कIशी हिन्दू महविद्द्यालय ( Banaras Hindu University)
(March 1974)
मैं और मेरा मित्र अब्दुस सलीम का बीफार्म में प्रवेश मिल गया था।
हम दोनों वाराणसी पहुँच गए और BHU के छात्रावास में व्यवस्थित स्थापित हो गये।
हमें सिर्फ ३ महीने ही यहां रहना था कोर्स पूरा करने के लिए।
हमने पहले सिर्फ इतना ही सुना था वाराणसी के बारे में की यह एक ऐतिहासिक एवंग तीर्थस्थल है और मंदिरों का शहर है ।
लेकिन यह नहीं मालूम था रसना को खुश करने के लिए तरह तरह के स्वाद यहां उपलब्ध होंगे।
हींग की कचौड़ी, इमरती, रबड़ी, मलाई, थोकडा, रंगीन हलुआ, जलेबी, घुघुरी, लिट्टी बट्टा, लिट्टी चोखा, मसाला पान, और बहुत कुछ, पूरा बताने जाऊंगा मेरे ही मुँह से लार टपकना शुरू हो जायेगा।
एक सप्ताह सिर्फ क्लास अटेंड करने और विभिन्न स्वादों का अस्वाद लेने में ही बीत गया।
लेकिन इन सभी बातों के अलावा मुझे कुछ अलग महसूस होता था जो उत्साह ने दबा रक्खा था।
उम्र के दस साल से हर शनिवार को हनुमान मंदिर जाया करता हूँ। ये बात मैं मेरी दादी से सीखा था उनके कहने पर , और आज भी हर शनिवार को मेरा पैर स्नान के पश्चात स्वतः मंदिर की ओर चल पड़ता है।
BHU से १ km की दूरी पर प्रसिद्ध हनुमान मंदिर स्थापित है जो संकट मोचन मंदिर के नाम से जाना जाता है।
उस दिन शनिवार था और सुबह साढ़े सात बजे स्नान के पश्चात मैं चल पड़ा मंदिर की ओर। सलीम सो रहा था , इसलिए उसे जगाना उचित नहीं समझा। वैसे वो भी शुक्रवार को मदनपुरा नमाज़ अदा करने जाया करता था , वो भी साढ़े सात को ही , क्योंकि हमे १० बजे क्लास अटेंड करना होता था।
मंदिर पहुंचा , हनुमान चालीसा का पाठ किया , फिर थोड़ी देर मूर्ति के सम्मुख हाथ जोड़ कर प्रार्थना किया और फिर यूनिवर्सिटी के लिए चल दिया।
मंदिर के गेट के बाहर पैर रखा ही था कि अचम्भे में खड़ा रह गया।
सामने से जीजाजी, दीदी , जीजाजी के भाई और उनकी पत्नी आ रहे थे।
दीदी मुझसे ५ साल बड़ी थी। वो मेरी माताजी की चचेरी बहन की पुत्री थी । एक साल पहले ही शादी हुई थी। जीजाजी और उनके भाई की शादी एक ही दिन और एक ही मंडप में संपन्न हुई थी। मुझे वे सब बहुत प्यार करते थे और मुझे कभी भी महसूस नहीं हुआ कि वो मेरी मौसेरी बहन है।
मेरे दीदी का नाम था रंजना, जीजाजी का शशांक, जीजाजी के भाई का अभिनव और उनकी पत्नी का माया।