ज़िंदादिल (Chirp)
एक कहावत है बुजुर्गों की,
जिसे हम आप बुर्जुआना ढंग पर सुनते आये हैं;
"ज़िंदगी ज़िंदादिली का नाम है , मुर्दा दिल क्या ख़ाक जिया करते हैं",
ये समय की, मेरी आपकी, आज के युग की,
एक भयावह हास्य परिकल्पना है,
जो पहले ही सुना दी गई।
खेत के मुंडेर पर बैठा मालिक,
मजूरिन के रोते हुए बच्चे को हिकारत,
भरी नज़र से देखता है।
और, मजूरिन के ----
चीथड़ों से झांकते, मेहनत से कांपते अंग को ,
ज़िंदादिल नज़र से देखता है,,,,,,,
इसलिए उनका दिल आज भी ज़िंदा है।
हमने एक ही बार तो कहा था,
दबी ज़बान से साथियों को----
मानवीय संवेदना, ज़ुल्म की परिभाषा,
और जीने का साधन,,,,,,
फिर और कुछ कहना सुनना नहीं पड़ा,
क्योंकि,
ज़बान, ज़रूरत, और बहुत कुछ,
उनके क्रूर हास्य तले,
दबी तो दबी रह गई।
और हम,
ज़बान हीं दिल लिए,
गैर ज़रूरत तन लिए,
उन्हीके बनाये आश्वाशनों की चिता पर,
मुर्दा दिल लिए ,
आज भी ज़िंदा है।
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(Sorry, I do not have courage to elaborate)
By Rabindra Nath Banerjee(Ranjan)